आओ हम,तुम,मैं,हमसब,
एक सुर में घुल-मिल जाएँ,
निर्बाध रूप में खोकर,
एक ही लय में प्रेम गीत गाएँ...
अंतर के सारे पैमाने तोड़ दो,
सरहदों,राज्यों की सीमाएँ,
धर्मों, कुल जातियों,का भेद,
रंग-रूप लंबाई- चौड़ाई का विभेद
अमीरी और गरीबी की खाई पाट जाएँ,
स्वर,व्यंजन,मात्राओं से एक नव रूप सजाएँ,
एक ही लय में प्रेम गीत गाएँ....
जमीन पर हैं,हजारों प्रतिबद्धताएं,
यह मेरा हिस्सा,वह तेरा हिस्सा,
यह मेरा टुकड़ा ,वह तेरा टुकड़ा
इस मेरे तेरे की लड़ाई में
बेवा होती हैं कितनी नवबधुएँ,
तो सहारों से वंचित होते वृद्ध माँ - बाप
और अनाथ होते मासूम बच्चे,
आनेवाली सदियों में आओ इनसब को भूल जाएं,
आओ जमीन से थोड़ा ऊपर उठकर,
बनकर पंक्षी एक ही आसमान तले
एक साथ अपनी अपनी उड़ान उड़ते जाएँ,
एक ही लय में.....
पुरुष-स्त्री लड़का- लड़की,
बेटी- बहु,पति-पत्नी,
सास- माँ, ननद- बहन
न जाने कितने आडंबरों से
हमने यह समाज बनाये,
तीन अक्षरों का लेकिन लगाकर
दो रिश्तों के बीच हमने
सौ फीट की दीवार बनाए,
सब भूलकर क्षण भर में,
आओ अपने लहू को बस अपना पहचान बनाए,
आप तोड़ कर सारे भ्रमित पैमाने,
हम मिलकर सिर्फ एक जहां बनाएं
इंसान बन जाएं,और बस इंसानियत निभाएँ...
एक ही लय में..
कहीं रोटियों का हिसाब नही,
कहीं एक रोटी को तरसते नयन,
कहीं कपड़ों से भरा है घर,
कहीं फटे, मैले कुचले दो- चार टुकड़े ढंकते हैं तन,
कहीं उपभोग और कहीं दुरुपयोग है,
कहीं दो पैसा मिल जाना भी एक संयोग है,
ज्यादा कुछ नही बस एक - एक कदम
हम सब एक दूसरे की ओर बढ़ाएं,
यह भेदो की दीवार तोड़ जाएं,
प्रेम ही प्रेम हो हम सबमे
प्रेम से ही हर रिश्ता जोड़ जाएं,
एक ही लय में.....
अल्लाह हो,भगवान हो,गुरु हो या फादर,
हम सब ऊपरवाले से जीवन पाकर,
उस जीवन को धन्य बनाएं,
रास्ता जो भी हो हमारी फकीरी का,
बस एक दूसरे को न ठेस पहुंचाएं,
धर्मों के आबंटन में उलझना छोड़ो,
ऐ मूढ़ मानवों ..इंसान हो,
जिसे भी माना है,उसे गौरवान्वित कर दे हमारा व्यक्तित्व,
ऐसी कृति बन जाएं..
आओ एक ही लय में.....
सुप्रिया"रानू"